डरे हुए माई लॉर्डों के भरोसे हमारे लोकतंत्र की सर्वोच्च अदालत

डरे हुए माई लॉर्डों के भरोसे हमारे लोकतंत्र की सर्वोच्च अदालतनई दिल्ली।


(सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा आज रिटायर हो रहे हैं। उनके लिए चीफ जस्टिस की कोर्ट नंबर 1 में विदाई समारोह आयोजित किया गया था। इस आयोजन में चीफ जस्टिस समेत सभी लोगों ने बारी-बारी से अपनी बात रखी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष दुष्यंत दवे को इसमें बोलने का मौका नहीं दिया गया। इस पर उन्होंने अपनी गहरी नाराज़गी जाहिर करते हुए चीफ जस्टिस एसए बोबडे को पत्र लिखा है। पेश है उनका पूरा पत्र-संपादक)


माननीय,


श्री शरद बोबडे मुख्य न्यायाधीश,


भारत सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया नई दिल्ली,


महोदय,


सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष के तौर पर मैं अपनी घोर आपत्ति दर्ज करना चाहता हूं और इसके साथ ही जस्टिस अरुण मिश्रा के फेयरवेल के समय सुप्रीम कोर्ट में आज जो हुआ उसकी निंदा करता हूं। आज सुबह 10 बज कर 06 मिनट पर मुझे एससीआई वीसी की टीम की तरफ से 12.30 बजे चीफ जस्टिस की कोर्ट में आयोजित समारोह में शामिल होने के लिए एक लिंक मिलता है। जिसे ह्वाट्सएप पर संबंधित रजिस्ट्रार ने भेजा था। मैंने स्वीकार करते हुए 10.16 पर इसका जवाब दिया जिसका 10.18 पर रजिस्ट्रार ने संज्ञान भी लिया। मैं लिंक के जरिये तकरीबन 12.20 पर आयोजन में शामिल हो गया और टीम द्वारा ऑडियो और वीडियो को सही बता कर उसकी पुष्टि भी कर दी गयी। उसके बाद मेरी एटॉर्नी जनरल और सालिसीटर जनरल से बात हुई। इसमें एससीओआरए के अध्यक्ष समेत दूसरे कुछ लोग भी शामिल थे। एक बार कोर्ट जब बैठ गयी तो मैं बिल्कुल साफ-साफ पूरी कार्यवाही को सुनता रहा। आखिर में श्री रोहतगी ने विदाई भाषण दिया। कोर्ट के काम के बाद वेणुगोपाल से बातचीत रखने का निवेदन किया गया। मैं देखा और उन्हें पूरा सुना। जबकि वह खुद श्री प्रशांत भूषण के दंड से नाखुश थे। जब उनका भाषण समाप्त हुआ तो मैंने सोचा कि अब मुझे बोलने के लिए कहा जाएगा। बजाय इसके यह बात जानते हुए कि मैं मौजूद हूं श्री जाधव को बोलने के लिए आमंत्रित किया गया। कुछ अज्ञात कारणों से मैं बार-बार डिस कनेक्ट हो जा रहा था लेकिन मैं प्रत्येक बार पूरी मजबूती के साथ फिर जुड़ जाता था। मैं श्री जाधव को पूरा सुना और देखा और उनके भाषण के बाद भी मुझे बोलने के लिए आमंत्रित नहीं किया गया। जबकि श्री जाधव ने भी मेरी मौजूदगी के बारे में बताया। उसके बाद माननीय चीफ जस्टिस बोले जिसको मैंने देखा और सुना उसके बाद जस्टिस मिश्रा को बोलने के लिए बुलाया गया। उस मौके पर खेल की पूरी योजना को समझने के बाद बार और अपने सम्मान तथा इन सबके बड़े हितों को ध्यान में रखते हुए मैं समारोह से बाहर निकल आया। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण जो बात है वह यह कि 12 बज कर 49 मिनट पर मैंने महासचिव को ह्वाट्सएप पर मैसेज किया और 12.53 पर फिर से यह जानने के लिए किया कि मुझे क्यों म्यूट पर रखा गया और ऐसा था तो फिर मुझे आमंत्रित क्यों किया गया था। उसके बाद उन्होंने 1.02 बजे उसका जवाब दिया और कहा कि वह रजिस्ट्रार को इस मसले को देखने का निर्देश दे रहे हैं। तब तक बहुत देर हो चुकी थी और इसलिए मैंने उनको संदेश दिया कि मैं बाहर हो चुका हूं। इस महान संस्था के एक हिस्से के बारे में यह पूरा प्रकरण बहुत कुछ कहता है। पूरा प्रयास इस बात का था कि आमंत्रित करने के बाद और आमंत्रण स्वीकार करने के बाद मुझे सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और उसकी कार्यकारिणी की तरफ से संबोधित करने से रोक दिया जाए। यह बिल्कुल साफ-साफ बार का अपमान था और निजी तौर पर मेरा। जब आप इस बात से इतना डर रहे हैं कि मैं कुछ परेशानी वाली बात कह सकता हूं तो आपको ठीक-ठीक बताता हूं कि मैं वो क्या कहने वाला था जिसको मैंने लिख रखा था। “मी लॉर्ड चीफ जस्टिस, जस्टिस अरुण मिश्रा के रिटायर होने पर क्या एससीबीए और उसकी कार्यकारिणी की तरफ से मुझे कुछ कहने की इजाजत है”? “एससीबीए, कार्यकारिणी और मेरी तरफ से जस्टिस मिश्रा आप खुश रहें इसकी कामना करता हूं और आप का बाकी जीवन भी उसी तरह से फलदायक हो जैसा कि अभी है। मैं लॉर्ड महाबलेश्वर से प्रार्थना करूंगा कि वह आपको इतनी शक्ति दें कि आप अपने भीतर झांक सकें और फिर आपकी चेतना जग सके।” मेरी तरफ से यही संदेश दिया जाना था। मुझे इस बात को स्वीकार करना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट अब उस स्तर तक पहुंच गया है जब जज बार से डर रहे हैं।


कृपया याद रखिए। जज आते-जाते रहते हैं लेकिन हम और बार हमेशा बने रहेंगे। हम इस महान संस्था की असली ताकत हैं क्योंकि हम स्थायी हैं। यह ज़रूर बताना चाहूंगा कि इस घटनाक्रम से मैं निजी तौर पर बेहद आहत हुआ हूं। और दिसंबर में अपना कार्यकाल पूरा होने तक आइंदा सुप्रीम कोर्ट की ओर से आयोजित किसी भी समारोह में भागीदारी नहीं करूंगा।


आपका शुभेच्छु


दुष्यंत दवे अध्यक्ष, एससीबीए


02 सितंबर, 2020


(जनचौक से साभार, शीर्षक हमारा)