कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों ने किया देशव्यापी चक्का जाम

कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों ने किया देशव्यापी चक्का जाम आंदोलन


पुरुषोत्तम शर्मा


देश भर में किसानों के विरोध के वावजूद मोदी सरकार के द्वारा जबरदस्ती लाए गए कारपोरेटपरस्त तीन कृषि कानूनों को वापस लेने, बिजली सुधार बिल 2020 को वापस लेने की मांग पर आज देश भर में किसान संगठनों ने चक्का जाम कार्यक्रम किया।



*अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (ए आई के एस सी सी)* *प्रेस बयान,


दिल्ली, 5 नवम्बर 2020*


*केंद्र सरकार के 3 किसान विरोधी खेती के कानूनों के खिलाफ देशभर में 5 लाख से ज्यादा किसान व खेत मजदूर विरोध सभाओं व चक्का जाम में शामिल हुए* एआईकेएससीसी के वर्किंग ग्रुप ने देश भर के किसानों को इस बात की बधाई दी है कि वे बड़ी संख्या में केंद्र सरकार के 3 किसान विरोधी, कारपोरेट पक्षधर खेती के कानून और बिजली बिल 2020 के खिलाफ गोलबंदी करते हुए, आज 4 घंटे का जगह-जगह "चक्का जाम" किया, विरोध सभाएं की और अधिकारियों को ज्ञापन सौंपा और मांग की कि सरकार इन सभी कानूनों को वापस ले। इन विरोधियों का नेतृत्व एआईकेएससीसी तथा हरियाणा व पंजाब के कई संगठनों ने मिलकर किया था।


देशभर में इन विरोध कार्यक्रमों में शांतिपूर्ण नागरिक अवज्ञा का पालन किया और किसी भी विरोध में कोई हिंसक घटना नहीं हुई। जैसा कि पहले घोषणा की गई थी सभी चक्का जाम के क्षेत्रों में बीमार व्यक्तियों एंबुलेंस पेट्रोल व डीजल व एलपीजी के वाहनों को मुक्त रास्ता दिया गया। प्रेस बयान भेजे जाने के समय उपलब्ध रिपोर्टों के अनुसार देश भर में 18 राज्यों में करीब ढाई हजार स्थानों पर 5,00,000 से ज्यादा किसानों और मजदूरों ने इन विरोधियों में भाग लिया।


कई स्थानों से रिपोर्टें अभी आ रही हैं और इन आंकड़ों की बढ़ने की उम्मीद है। व्यापक विरोध होने की इन रिपोर्टों से स्पष्ट है कि किसानों का गुस्सा देशव्यापी है और सरकार का यह दावा कि विरोध कुछ इलाकों में केंद्रित है पूरी तरह से गलत है। किसानों ने तमिलनाडु से पंजाब तक, असम से गुजरात तक सभी जगह भारी भागीदारी करके यह संदेश दिया है कि केंद्र सरकार की दादागिरी और किसानों की जीविका छीनने की मंशा को जमीनी स्तर पर नहीं सहा जाएगा। इस विरोध ने "एक देश एक किसान विरोध" के नारे को बुलंद किया है।


यह बात भी स्पष्ट है कि किसानों ने केंद्र सरकार के 3 कानूनों को और बिजली बिल को स्पष्ट तौर पर अस्वीकार कर दिया है, भले सरकार उसे मिठास लगाकर वह झूठे दावों के साथ पेश कर रही है। पिछले 7 सालों से किसान देख रहे हैं कि सरकार के दावे ऊंचे होते हैं पर अमल बहुत कमजोर हैं तथा विपरीत दिशा मै होता है। बाढ़ से लेकर सूखे की स्थिति में, लागत के दाम नियंत्रित ना करने, बीमा के लाभ किसानों को ना देने, सभी मसलों में सरकार ने देश के अन्नदाता के हित के खिलाफ काम किया है।


यह वर्तमान हमला कारपोरेट द्वारा भारी मुनाफा कमाने और किसानों को नुकसान पहुंचाने के लिए अमल किए जा रहे हैं और किसान इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं है।


देश भर के 500 से ज्यादा किसान संगठनों ने आज के इस राष्ट्रव्यापी चक्का जाम आंदोलन में हिस्सा लिया। देश के लगभग सभी राज्यों में लाखों किसान सड़कों पर उतरे। दोपहर 12 बजे से सायं चार बजे तक चक्का जाम आंदोलन चला। बीमारों, एम्बुलेंस, बुजुर्गों व दूध वाहनों को जाने का रास्ता दिया गया।


 


देश के किसान इन चारों काले कानूनों वापस लेने की मांग पर अड़े हैं। किसानों का आरोप है कि ये चारों कानून देश की खेती, किसानी, खाद्य सुरक्षा और विद्युत को कारपोरेट के हवाले कर देंगे। किसान इनके ख़िलाफ़ आर-पार की लड़ाई का मन बना चुका है। 26-27 नवम्बर को लाखों किसान दिल्ली मार्च करेंगे।