इस आन्दोलन में अकेले पंजाब नहीं पूरे देश के किसान संगठनों की भूमिका हैं

 इस आन्दोलन में अकेले पंजाब नहीं पूरे देश के किसान संगठनों की भूमिका हैं

पुरुषोत्तम शर्मा

(किसानों का दिल्ली पड़ाव पुस्तिका का अंतिम भाग)



केंद्र सरकार वर्तमान किसान आन्दोलन को अकेले पंजाब के किसानों का आन्दोलन कह प्रचारित करती है. जबकि इस आन्दोलन में शामिल 500 से ज्यादा किसान संगठनों में पंजाब के मात्र 32 संगठन ही हैं. बाक़ी 470 से ज्यादा किसान संगठन देश के अन्य राज्यों में कार्यरत हैं. दिल्ली मार्च का आह्वान करने करने वाले किसानों के साझे मोर्चे में राजू सेट्टी के नेतृत्व वाला सेतकारी संगठना महाराष्ट्र, प्रतिभा सिंदे के नेतृत्व वाला लोक संघर्ष मोर्चा गुजरात, महाराष्ट्र, मेधा पाटकर के नेतृत्व वाला नर्मदा बचाओ आन्दोलन, मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र, शिव कुमार कक्का के नेतृत्व वाला भारतीय किसान महासंघ मध्य प्रदेश, डॉ सुनीलम के नेतृत्व वाला किसान संघर्ष समिति, मध्य प्रदेश, गुरुनाम चढूनी के नेतृत्व वाला भाकियू चढूनी हरियाणा, राकेश टिकैत के नेतृत्व वाला भाकियू टिकैत उत्तर प्रदेश, कविता कुरुगंती के नेतृत्व वाला आसा कर्नाटका, चंद्रशेखर के नेतृत्व वाला कर्नाटका रैयत संगम, कर्नाटक, अन्नाकन्नु के नेतृत्व वाला किसान संगठन, तमिलनाडू, अखिल भारतीय किसान मजदूर संगठन, जय किसान जैसे देश के प्रमुख किसान संगठन जुड़े हैं. इसमें अखिल भारतीय किसान महासभा, अखिल भारतीय किसान सभा केनन लेन, अखिल भारतीय किसान सभा अजय भवन, अखिल भारतीय किसान खेत मजदूर संगठन जैसे बड़े राष्ट्रीय स्तर के किसान संगठन इस मोर्चे को बड़ा राष्ट्रीय आधार हैं, जिनका संगठन और प्रभाव देश के लगभग 25 से भी ज्यादा प्रदेशों में फैला है.

किसान संगठनों के साझे मोर्चे के सभी प्रमुख नेता दिल्ली में किसानों के ऐतिहासिक पड़ाव स्थल से ही आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे हैं. किसान संगठनों के इस साझे मोर्चे ने पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और नजदीकी राजस्थान के ही किसानों से दिल्ली पहुंचने का आह्वान किया था. बाक़ी देश के किसानों से अपने राज्य, जिला, तहसील, ब्लाक मुख्यालयों पर राष्ट्रीय आह्वानों के तहत धरने प्रदर्शनों का आह्वान किया है. इस लिए सिर्फ दिल्ली के बार्डरों पर दिख रहे चेहरों से इस आन्दोलन की व्यापकता को आंकना बड़ी गलती होगी. दिल्ली से साझे मोर्चे द्वारा किये जा रहे आन्दोलन के आह्वानों पर कश्मीर से लेकर तमिलनाडु और असम, मणिपुर से लेकर गुजरात तक देश के लाखों किसानों का एक साथ सड़क पर उतरना इस आन्दोलन के राष्ट्रीय चरित्र को सामने ला रहा है. सरकार की कोशिश किसानों की इस राष्ट्रव्यापी चट्टानी एकता को तोड़ने की है. पर वह उसमें कहीं से भी कामयाब नहीं हो पा रही है. देश भर में किसानों के लिए लड़ने वाले सभी संगठन इन तीन काले कृषि बिलों के खिलाफ एकजुट हैं. देश के किसानों का इन बिलों को वापस कराने के दृढ निश्चय ने ही किसान संगठनों की एकता को इतना विस्तार दिया है.

अखिल भारतीय किसान महासभा की इस आन्दोलन में प्रभावशाली भूमिका है. किसान महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कामरेड रुलदू सिंह पंजाब किसान यूनियन के भी अध्यक्ष हैं. इस नाते वे अकेले एक ऐसे किसान नेता हैं जो पंजाब और राष्ट्रीय स्तर पर निर्णयकारी संस्थाओं में संगठन का प्रतिनिधित्व करते हैं. वे सरकार के साथ हर स्तर की वार्ताओं में जाने वाली किसान नेताओं की टीम में शामिल रहते हैं. किसान नेताओं की बैठकों और राष्ट्रीय स्तर के समन्वयों के साथ राष्ट्रीय अध्यक्ष कामरेड रुलदू सिंह, राष्ट्रीय महासचिव राजा राम सिंह और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कामरेड प्रेम सिंह गहलावत प्रमुख भूमिका निभाते हैं. जबकि किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव पुरुषोत्तम शर्मा अपने संगठन और पूरे आन्दोलन के बीच समन्वय की जिम्मेदारी निभाते हैं. सिंघु बॉर्डर पर किसान महासभा की ओर से व्यवस्था व संचालन में कामरेड कंवलजीत सिंह, अमन रतिया चंडीगढ़, बलबीर सिंह रंधावा गुरुदासपुर, बूटा चकरी लुधियाना. सुखदेव सिंह भागूकामा, हरविंदर भागूकामा गुरुदासपुर , गुरंदर सिंह फतेहगढ़, जगदीप सिंह कंसाला मोहाली प्रमुख भूमिका निभाते हैं. जबकि टीकरी बॉर्डर पर चल रहे धरने की व्यवस्था, मंच संचालन आदि जिम्मेदारियों में किसान महासभा से जुड़े पंजाब किसान यूनियन के राज्य सचिव कामरेड गुरुनाम सिंह, जसबीर कौर, सुखदर्शन नत्त, बलबीर सिंह जालूर, बलकरण बल्ली आदि नेताओं की प्रमुख भूमिका रहती है. 

टीकरी बॉर्डर पर किसान आन्दोलन को नेतृत्व देने वाली सभी संगठनों की दूसरे और तीसरे कतार का नेतृत्व है. पहली कतार का नेतृत्व सिंघु बॉर्डर पर रहता है. क्योंकि वह आन्दोलन का मुख्य केंद्र बनकर उभरा है और किसान नेताओं की सभी बैठकें वहीं होती हैं. वहीं से सरकार और मीडिया से भी संपर्क साधा जाता है. टीकरी बॉर्डर पर हमारे कार्यकर्ताओं की भी बड़ी टीम मौजूद है और वहां हमने अपने किसान संगठन का एक कैम्प कार्यालय भी भी विकसित किया है. इस कैम्प कार्यालय पर कार्यकर्ताओं के साथ लगातार आन्दोलन और हमारी जिम्मेदारियों पर चर्चा होती है. मंच व व्यवस्था में लगे हमारे प्रमुख नेताओं के अलावा वहां जग्गासिंह बदरा, सुरजीत सिंह हैप्पी, रंजीत सिंह तामकोट, केवलसिंह हीरेवाल, पंजाबसिंह तलवंडी अकालिया, प्रतापसिंह तलवंडी अकालिया, कुलदीपसिंह तलवंडी अकालिया, बब्बूसिंह कुलारियाँ, हैप्पीसिंह कुलारियाँ, सुखचरन सिंह मानसा,कान्हां सिंह, रूपसिंह, अमनप्रीत सिंह, दर्शन सिंह, बंत कौर, नसीब कौर, नछत्तर कौर, बेअंत कौर, गुरजीत कौर, जसबीर कौर जवारके और गुरदीप कौर जैसे कई और प्रमुख कार्यकर्ता आन्दोलन को अनुशासित व व्यवस्थित करने में अपनी भूमिका निभाते हैं.

सिंघु बॉर्डर पर AICCTU (एक्टू) और AISA (आइसा) ने किसानों के लिए एक मेडिकल कैम्प लगाया है. एक्टू से जुड़ी इण्डियन रेलवे इम्प्लाइज फैडरेशन ने किसान आन्दोलन को समर्थन देते हुए रेल मजदूरों की ओर से एक लाख रुपया चन्दा देने की घोषणा की है. आइसा के कार्यकर्ता सभी धरनों में किसानों को उत्साहित करने के लिए चर्चा करते हैं और क्रांतिकारी गीतों से उनमें नया जोश भर रहे हैं. दिल्ली जयपुर हाइवे पर लगे किसानों के साझे मोर्चे पर किसान महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष फूलचंद ढेवा, राष्ट्रीय सचिव कामरेड रामचंद्र कुलहरि और राहुल चौधरी के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं की एक टीम मौजूद है। दिल्ली आगरा मार्ग पर दिल्ली से नजदीक लगे किसानों के साझे मोर्चे पर किसान महासभा के कोसी क्षेत्र मथुरा के नेता धर्मबीर सिंह, ब्रह्मम सिंह और भगीरथ अपने साथियों के साथ डटे हैं। उसी तरह यमुना एक्सप्रेस वे पर बाजना में चल रहे किसानों के स्थाई साझे मोर्चे पर किसान महासभा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य कामरेड नत्थीलाल पाठक के नेतृत्व में कार्यकर्ता जमे हुए हैं।

देश के लगभग 21 राज्यों में किसान महासभा के कार्यकर्ता पूरे जोश से आन्दोलन के आह्वानों को लागू कर रहे हैं. अखिल भारतीय खेत एवं ग्रामीण मजदूर सभा के कार्यकर्ता और पंजाब में मजदूर मुक्ति मोर्चे के कार्यकर्ता किसानों द्वारा आहूत 8 दिसंबर के भारत बंद में पूरी ताकत से जुटे. अखिल भारतीय किसान महासभा के बैनर तले पंजाब, हरियाणा, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखण्ड, असम, त्रिपुरा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तराखण्ड, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरला, पांडिचेरी, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक जैसे देश के 21 राज्यों में बड़े पैमाने पर किसान सड़कों में उतरे हैं. 

बिहार में जहां अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के दो सदस्य कामरेड सुदामा प्रसाद और कामरेड अरुण सिंह विधायक चुने गए हैं, उनके नेतृत्व में बिहार विधान सभा पर एक दिन वामपंथी विधायकों और एक दिन महागठबंधन के विधायकों ने प्रदर्शन कर तीनों कृषि कानूनों का विरोध किया. उन्होंने बिहार के मुख्य मंत्री से इन कानूनों को बिहार में अप्रभावी बनाने वाले विधेयक तत्काल लाने की मांग की है. विधायक व किसान नेता कामरेड सुदामा प्रसाद और आइसा छात्र संगठन के तत्कालीन महासचिव व बिहार के नवनिर्वाचित विधायक संदीप सौरभ ने सिंघु और टीकरी बार्डरों पर जाकर किसान आन्दोलन को अपने संगठनों का पूरा समर्थन दिया.