मुल्क में कोविड-19 की दूसरी लहर की तबाही से बदहाल अवाम अपने परिजनों की रोज़ाना हो रही मौतों पर ग़म में डूबी हुई है और इस सबके बीच भारत सरकार की निर्दयता-निष्ठुरता चरम पर पहुँच गयी हैं।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन [आईएमए] के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने मेडिकल ऑक्सीजन की प्राणघाती कमी और 'कोविड नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हुए' धार्मिक जमावड़ों व चुनावी रैलियों के लिए प्रधानमंत्री को ज़िम्मेदार ठहराते हुए उन्हें को 'सुपर स्प्रेडर' [महा कोविडप्रसारक] कहा। दिल्ली उच्च न्यायालय ने मेडिकल ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों को 'जनसंहार की तरह' बताते हुए मोदी सरकार को इसका ज़िम्मेदार ठहराया।
लेकिन ऐसे भयानक अभियोगों के बावजूद मोदी, उनकी कैबिनेट और उनकी पार्टी की कान पर जूँ तक नहीं रेंगी और वे उसी तबाही फैलाने वाले रास्ते पर चलते रहे। असल में तो केंद्र और राज्यों की भाजपा सरकारें लोगों की जिंदगी बचाने की बजाय अपनी 'छवि' बचाने में लगी रहीं। मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति व अंतर्राष्ट्रीय मदद भेजने के लिए केंद्रीय कमान बनाने की काफ़ी समय से की जा रही माँग के बजाय मोदी सरकार व संघ गिरोह 'पॉजिटिविटी अनलिमिटेड' [अनंत सकारात्मकता] अभियान चलाने में जुटा रहा।
इस अभियान ने किसी भी तरह की 'नकारात्मकता' को झिड़क दिया। इस अभियान के हिसाब से रोज-रोज कोविड से हो रही मौतों के बारे में हमें एकदम नहीं सोचना चाहिए, श्मसानों में लाशों की क़तार देखकर हमें कतई नहीं डरना चाहिए, हवा में सिहरती लाशों के जलने की गंध भूल जानी चाहिए, अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी और साँसों की टूटती डोरी से मरते लोगों की खबरें नहीं देखनी-सुननी चाहिए, उत्तर प्रदेश में गंगा में प्रवाहित, बिहार के गंगा तट पर टकराती कोविड मरीज़ों की लाशों से आंखें मूँद लेनी चाहिए। उस पूर्व राजदूत के बारे में भी हमें कोई ख़बर पढ़नी-सुननी नहीं चाहिए जो अस्पताल की पार्किंग में ऑक्सीजन का इंतज़ार करते-करते इस दुनिया से चले गए। और तो और इस सकारात्मकता के कारण हमें वेंटिलेटर, ऑक्सीजन, दवाओं और अस्पतालों में ख़ाली बेड के बारे में कोई सूचना किसी से नहीं साझा करनी चाहिए। सरकार के भोंपू दाढ़ी वाले बाबा और सूट-बूट वाले टीवी एंकर हमें बता रहे हैं कि यह सब सोचना 'नकारात्मक' होना है! ऐसा सोचने वाले 'नकारात्मक' लोगों को चेतावनी दी जा रही है कि वे देशद्रोही हो रहे हैं, और यह भी कहा जा रहा है कि नकारात्मकता की 'अफ़वाह' फैलाने और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा होने के नाते ऐसी सोच वाले लोगों को सलाख़ों के पीछे डाला जा सकता है। पुलिस बल के ज़िम्मे नया काम आन पड़ा है, उन्हें आनन-फ़ानन में श्मशानों के चारों ओर अस्थायी दीवार खड़ी करनी पड़ रही है जिससे वहाँ की भीड़ और लाशों की क़तारें लोगों को न दिख सकें!
आज इस मुल्क के हर घर से कोविड में अपने किसी सगे को खोने की रुलाई उठ रही है। और सरकारी 'सदगुरु' हमें ज्ञान बाँट रहे हैं कि रोज़ाना मौत का आँकड़ा 'अप्रासंगिक' है! मतलब तो यही हुआ न कि अपने जिन प्यारे लोगों को हमने खो दिया, वे उनकी नज़र में संख्या भर भी नहीं हैं, आँकड़ा भर भी नहीं हैं। राज्य सरकारें मौतों का आँकड़ा कम करके बता रही हैं, पर अख़बारों के पन्ने दर पन्ने श्रद्धांजलियों से भरे हुए हैं, पार्कों, गलियों और पार्किंग की जगहों पर अंतिम संस्कार किए जा रहे हैं। भारत सरकार के मुताबिक़ कोविड से हुई मौतों की संख्या ढ़ाई लाख है। असलियत में मौतों का आँकड़ा इससे तीन से आठ गुना ज्यादा हो सकता है। मतलब साफ़ है कि सरकार की क्रूर लापरवाही के चलते अपनी जान से हाथ धो बैठने वाले लोगों की संख्या लगभग बीस लाख है। बीस लाख! हाँ, साफ-साफ इसे जनसंहार ही कहा जाना चाहिए।
कोविड के 'इलाज' का दावा करते हुए सरकारी प्रचारक और कोविड महामारी में फ़ायदा लूटने वाले 'संत' बाबा रामदेव स्वास्थ्य मंत्री के साथ अपना उत्पाद 'कोरोनिल' चलाने की कोशिश में लगे रहे। रामदेव का कहना है कि ऑक्सीजन हवा में मुफ़्त में मौजूद है, बस हमें अपने ऑक्सीजन सिलेंडर, नाक से ठीक से साँस लेना आना चाहिए। अगर किसी ने शिकायत की कि उसके फेफड़े, कोविड के चलते क्षतिग्रस्त हो गए हैं तो बाबा मज़ाक़ उड़ाते हुए उसको 'बावला' बता देगा।
कोविड जनसंहार को मोदी सरकार की फ़ासीवादी नीतियों और प्राथमिकताओं से अलग करके देखना असम्भव है। पूरी दुनिया की सरकारें कोविड की दूसरी लहर से जूझने के लिए पिछले साल से ही अपनी मेडिकल सुविधाएँ बढ़ाने और वैक्सीन उपलब्ध कराने में जुटी हुई थी। और मोदी सरकार क्या कारनामे कर रही थी? ये लोग डींग हांक रहे थे कि कोरोना पर जीत हासिल हो गयी! ये लोग, ग़रीब-विरोधी, हिंदू वर्चस्ववादी नागरिकता क़ानून और नागरिकता रजिस्टर का शांतिपूर्ण विरोध करने वाले नौजवान विद्यार्थियों और मुस्लिम कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार करने में लगे हुए थे!
ये लोग अपनी पार्टी के उन दंगा भड़काने वाले नेताओं को बचाने में लगे हुए थे जिन्होंने भीड़ को मुसलमानों के क़त्लेआम के लिए उकसाया। ये लोग गैर-क़ानूनी तरीक़े से सांसद से तीन किसान विरोधी कानून बनवाने के महान काम में लगे हुए थे! इनके पास यह भी ज़रूरी काम था कि इन दमनकारी क़ानूनों का विरोध करने वाले हर किसान, विद्यार्थी या नागरिक का चरित्र हनन किया जाय, उसे जेल में डाला जाय। कोरोनिल को बढ़ावा देने से लेकर गोबर से कोविड के इलाज जैसी नीमहकीमी कोई कम ज़रूरी काम थे क्या! साथ ही कोविड नियमों की धज्जियाँ उड़ाने वाले धार्मिक जमावड़े और चुनाव प्रचार तो बहुत ही ज़रूरी थे न! मृत्यु उपत्यका बना दिए गए इस देश के ख़िलाफ़ किए गए इन भयानक अपराधों का ज़िम्मेदार प्रधानमंत्री मोदी के अलावा और कौन है!
मोदी ने वैक्सीन के लिए पहला ऑर्डर कब दिया? जनवरी में वैक्सीन लगाने के अभियान के ठीक पाँच दिन पहले। इससे महीनों पहले तक तो बहुत सारे देशों ने वैक्सीन का भंडार इकट्ठा कर लिया था। चुनाव वाले राज्यों में भाजपा के जीतने पर फ़्री वैक्सीन बाँटने का वादा करने वाले मोदी ने दरअसल राज्य सरकारों को केंद्र सरकार से ज्यादा क़ीमत पर वैक्सीन ख़रीदने को मजबूर करके वैक्सीन निर्माताओं को भारी मुनाफ़ा कमाने की इजाजत दी। भारत के 150 ज़िलों में ऑक्सीजन प्लांट के निर्माण की घोषणा के बाद पूरे आठ महीने सरकार ने टेंडर निकालने में ही खर्च कर दिए- नतीजा यह हुआ कि बनने थे 162, बने सिर्फ 33 प्लांट। अब जब मुल्क का दाम घुट रहा है, तब मोदी केंद्रीय दिल्ली की ऐतिहासिक इमारतों को ज़मींदोज़ कर अपना स्मारक 'सेंट्रल विस्टा' बनाने में लगे हुए हैं। इस निर्दयता और लापरवाही का ज़िम्मेदार प्रधानमंत्री मोदी के अलावा और कौन है!
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर भ्रष्टाचार के आरोपों पर 'मौन' धारण करने का आरोप लगाते हुए मोदी सत्ता में आए। विडम्बना देखिए कि आज देश के 20 लाख नागरिकों की मौत पर ख़ुद मोदी चुप्पी साधे हुए हैं। मौतों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। न सिर्फ़ ऑक्सीजन बल्कि सामान्य जानकारियों के लिए भी लोग सरकार पर नहीं, बल्कि विपक्षी पार्टियों के युवा संगठनों और नागरिकों के अनौपचारिक नेटवर्कों पर निर्भर हैं और मोदी चुप्पी साधे हुए हैं। निश्चित ही मोदी उम्मीद कर रहे हैं कि वे अपने अपराधों की सारी ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ सकते हैं। वे उम्मीद कर रहे हैं कि अगर वे और उनका पालतू मीडिया इन अपराधों पर, मौत के आँकड़ों पर और सरकार द्वारा फैलायी गयी तबाहियों पर बात नहीं करेंगे तो अगले चुनाव के पहले यह सब कुछ भुला दिया जाएगा।
पर भारत मोदी और कोरोना के अगले प्रकोप को झेलने के लिए अगले चुनाव का इंतजार नहीं कर सकता। मुल्क में मौत का यह तांडव तत्काल बंद होना चाहिए और इसके लिए पहली शर्त यह है कि मोदी बिना एक क्षण देर किए प्रधानमंत्री की गद्दी से उतर जाएँ। और हाँ, उनके साथ उनके जोड़ीदार महा कोरोना-प्रसारक गृहमंत्री अमित शाह और स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन भी गद्दी छोड़ें।
- भाकपा-माले
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी – लेनिनवादी)