25 सितंबर को किसानों के किया भारत बंद का आह्वान

 सिंघू मोर्चे पर संयुक्त किसान मोर्चा का अखिल भारतीय कन्वेंशन सम्पन्न

पुरुषोत्तम शर्मा

संयुक्त किसान मोर्चा का पहला अखिल भारतीय कन्वेंशन कन्वेंशन 26-27 अगस्त को दिल्ली के सिंघू बार्डर मोर्चा पर आयोजित किया गया. यह कन्वेंशन किसान आंदोलन के विस्तार और उसे मजबूत बनाने के सवालों पर केंद्रित था. इस ऐतिहासिक कन्वेंशन में शामिल होने के लिए 22 राज्यों के 2000 प्रतिनिधि पहुंचे. जिनमें 300 से अधिक किसान और कृषि श्रमिक संगठनों, 18 अखिल भारतीय ट्रेड यूनियनों, 9 महिला संगठनों और 17 छात्र और युवा संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतिनिधियों ने भाग लिया. भारत के ऐतिहासिक किसान आंदोलन के 273-74 वें दिन आयोजित इस राष्ट्रीय कन्वेन्शन में पहुंचे देश भर के ट्रेड यूनियनों और अन्य जन जनसंगठनों के प्रतिनिधियों का कहना था “मोदी सरकार का अहंकार और अज्ञानता पूरी दुनिया देख रही है, वहीं देश के किसान लोकतांत्रिक आंदोलनों के लिए प्रेरणा बन गए हैं”. यह दो दिवसीय राष्ट्रीय कन्वेन्शन पाँच सत्रों में बांटा गया, पाले दिन तीन सत्र और दूसरे दिन दो सत्र. कन्वेंशन के पूर्व घोषित उद्घाटनकर्ता संयुक्त किसान मोर्चा के वरिष्ठ किसान नेता बलबीर सिंह राजोवाल के अस्वस्थ्य होने के कारण कन्वेंशन का उद्घाटन चर्चित किसान नेता राकेश टिकैत ने किया.

राकेश टिकैत ने देश भर से आए सभी प्रतिनिधियों का स्वागत किया और सभी मांगों को पूरा होने तक शांतिपूर्ण विरोध जारी रखने के किसानों के संकल्प की पुष्टि की. उन्होंने कहा देश किसान कारपोरेट खेती इन कानूनों को कटाई बर्दास्त नहीं करेगा. राकेश टिकैत ने मोदी सरकार द्वारा देश के संशाधनों को कारपोरेट को लुटाने की मोदी सरकार की कार्यवाही को देश की तबाही का रास्ता बताते हुए इस सरकार के खिलाफ आंदोलन को तेज करने का आह्वान किया. इसके बाद किसान आंदोलन के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए शोक प्रस्ताव रखा गया. कन्वेंशन की आयोजन समिति के संयोजक डॉ. आशीष मित्तल ने प्रतिनिधियों के सामने कुछ प्रस्तावों का मसौदा रखा, जिसमें लोगों से देश भर में चल रहे संघर्ष को तेज करने और विस्तार करने का आह्वान किया गया, ताकि मोदी सरकार 3 कृषि विरोधी कानूनों को निरस्त करने के लिए मजबूर हो सके और एमएसपी की कानूनी गारंटी दें. पहले दिन अधिवेशन में 3 सत्र थे, पहला 3 काले कानूनों से संबंधित, दूसरा औद्योगिक श्रमिकों को समर्पित और तीसरा कृषि श्रमिकों, ग्रामीण गरीबों और आदिवासी मुद्दों से संबंधित था. दूसरे दिन के दो सत्रों में पहला सत्र महिला प्रश्न और दूसरा छात्र युवाओं के सवालों पर केंद्रत था. सभी सत्रों में वक्ताओं ने किसानों, मजदूरों, महिला किसानों, कृषि श्रमिकों, आदिवासियों, महिलाओं, छात्र और यवाओं के साथ ही आम लोगों को शामिल करते हुए आंदोलन को व्यापक और विस्तारित करने के लिए जोरदार ढंग से अपने सुझाव दिए,

प्रत्येक सत्र को लगभग 20 वक्ताओं ने संबोधित किया और कन्वेंशन में रखे गए संकल्प को अपने सुझाओं से समृद्ध किया. इस सत्र को किसान महासभा के राष्ट्रीय महासचिव राजा राम सिंह, किसान सभा के महासचिव हन्नान मौलाह, किसान सभा अजय भवन के महासचिव अतुल कुमार अनजान, एनएपीएम की नेता मेधा पाटकर, किसान संघर्ष समिति के नेता डॉ सुनीलम, बीकेयू उगराहां के जोगेंदर सिंह उगराहां, बीकेयू चढूनी के नेता गुरुनाम सिंह चढूनी, बीकेयू असली के नेता चौधरी हरपाल, जय किसान आंदोलन से योगेंद्र यादव, एआईकेकेएमएस के नेता सत्यवान सहित तमाम महत्वपूर्ण किसान नेताओं ने संबोधित किया. किसान महासभा के राष्ट्रीय महासचिव कामरेड राजा राम सिंह ने इस एटिहासिक आंदोलन में डटे देश के किसानों को सलाम करते हुए कहा कि हम अपनी खेती किसानी को कारपोरेट कंपनियों का गुलाम नहीं होने देंगे. उन्होंने कहा एक तरफ मोदी सरकार देश के संशाधनों को चंद कारपोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लूटा रही है, दूसरी तरफ जनता का ध्यान बांटने के लिए सांप्रयायिक एजंडा लेकर आ रही है. पर देश का किसान अब सजग है और इस किसान मजदूर विरोधी सरकार को उखाड़कर ही दम लेगा.

कन्वेंशन के अन्य सत्रों को एपवा की राष्ट्रीय सचिव कामरेड कविता कृष्णन, एआईसीसीटीयू के राष्ट्रीय महासचिव राजीव डिमरी, आल इंडिया खेत एवं ग्राम मजदूर सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीराम चौधरी, आईसा के राष्ट्रीय महासचिव प्रसन्नजीत, सत्यशोधक सेतकारी सभा के संगठक किशोर धमाले ने भी संबोधित किया. अन्य सभी वक्ताओं ने भी मोदी राज में बढ़ रहे कार्पोरेटीकरण और देश के हर तबके पर फासीवादी हमलों के खिलाफ संघर्ष में किसान आंदोलन के साथ व्यापक एकजुटता पर जोर दिया.

दूसरे दिन 27 अगस्त 2021 को संयुक्त किसान मोर्चा के राष्ट्रीय कन्वेंशन ने सर्वसम्मति से देश के हर गाँव में अपने आंदोलन का विस्तार करने और 25 सितंबर, 2021 को एक दिवसीय भारत बंद का आह्वान करने के बाद संपन्न हुआ. इसने किसानों से यह भी आह्वान किया कि वे मुजफ्फरनगर में 5 सितंबर को आयोजित एसकेएम की रैली को विरोध का एक विशाल प्रदर्शन बनाने के लिए पूर्ण प्रयास करें. प्रतिनिधियों ने 3 कृषि अधिनियमों को रद्द करने, सी2+50 प्रतिशत के एमएसपी पर सभी कृषि उपज की खरीद की कानूनी गारंटी के लिए कानून बनाने, नए बिजली बिल को निरस्त करने और एनसीआर में वायु गुणवत्ता के नाम पर किसानों पर मुकदमा चलाने पर प्रतिबंध लगाने के मांगों को दोहराया. प्रतिनिधियों ने संघी गिरोह द्वारा बार-बार अल्पसंख्यकों पर सांप्रदायिक हमला करने और देश की प्राकृतिक संपत्ति और सार्वजनिक क्षेत्र को कॉर्पोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को बेचने के खिलाफ भी नारे लगाए, तथा इनसे संबंधित विषयों पर लिए गए प्रस्तावों को मंजूरी दी गई.

आयोजन समिति के संयोजक डॉ आशीष मित्तल ने कन्वेंशन में व्यक्ताओं के विचारों का सारांश रखा. उन्होंने कहा सभी वक्ताओं के विचारों से यह बिल्कुल स्पष्ट है कि आज पूरा किसान समुदाय कृषि, खाद्य भंडारण और कृषि बाजार के सभी पहलुओं पर कॉरपोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के नियंत्रण से लड़ने के लिए मजबूर है. लेकिन यह हमला किसानों और खेतिहर मजदूरों तक सीमित नहीं है. यह भारत के मेहनतकश लोगों के सभी वर्गों पर चौतरफा हमला हैं. देश की संपत्ति, जो अपने लोगों को रोजगार और सुरक्षा प्रदान करने के लिए है, जैसे रेलवे, पावर ट्रांसमिशन लाइन, प्राकृतिक गैस संसाधन, दूरसंचार परियोजनाएं, खाद्य भंडारण, बीमा, बैंक, आदि, को बेचे जा रहा है. 4 श्रम कोड के माध्यम से औद्योगिक श्रमिकों के मूल अधिकारों पर हमला किया जा रहा है. गरीबों के लिए कल्याण और सेवा क्षेत्र, विशेष रूप से सब्सिडी और राशन पर निशाना साधा जा रहा है. आवश्यक वस्तुओं, विशेषकर ईंधन की कीमतों में भारी वृद्धि की जा रही है. सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा क्षेत्र का निजीकरण किया जा रहा है और इन क्षेत्रों के विकास में केवल कॉरपोरेट का वर्चस्व है. अर्थव्यवस्था के विकास के नाम पर, हिंदुत्व की आड़ में, लोगों की स्वतंत्रता पर फासीवादी हमलों के माध्यम से, आम लोगों को आतंकित करके, कॉर्पोरेट की लाभ वृद्धि में मदद की जा रही है.

इस कन्वेंशन ने तीन कृषि कानूनों, एमएसपी और अन्य की मांग पर चर्चा की और प्रत्येक पहलू पर एक विस्तृत प्रस्ताव को मंजूरी दी. इसने किसानों से राज्य / जिला एसकेएम इकाइयों का गठन करने और सभी सहायक संगठनों के साथ राज्यों और जिलों में संघर्ष करने, सम्मेलनों, रैलियों का आयोजन करने, टोल वसूली का विरोध करने और किसानों की देशभक्त मांगों को स्वीकार करने से इनकार करने के लिए भाजपा और एनडीए नेताओं के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध करने का आह्वान किया. कन्वेंशन ने समझा कि सरकार द्वारा सुझाए गए, ‘समाधानके सभी प्रस्ताव, कृषि के कॉरपोरेट अधिग्रहण, किसानों की भूमि और आजीविका के नुकसान और पर्यावरण, पारिस्थितिकी और जैव विविधता को नुकसान की किसानों की आशंका में कोई राहत नहीं देते हैं. कन्वेंशन ने, किसानों को, आरएसएस-भाजपा के सभी उकसावों, सरकार द्वारा निराधार और झूठे आरोप लगाने, कठोर कानूनों के तहत फरजी रूप से पाबंध करने के बावजूद, देश को लूट से बचाने हेतु, नागरिकों को पेरित करने के लिए, शांतिपूर्ण विरोध जारी रखने का आह्वान किया. कन्वेंशन ने समझा कि इस आंदोलन ने सभी धर्मों, जातियों और क्षेत्रों के लोगों को एकजुट करने में एक महत्वपूर्ण काम किया है और कॉरपोरेट लूट से मुक्त आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में, सबसे उत्पीड़ित वर्गों के विश्वास और भागीदारी को प्रेरित किया है.