पुरुषोत्तम शर्मा
5 सितम्बर 2021 को उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर के जीआईसी मैदान में संयुक्त किसान मोर्चा ने ऐतिहासिक किसान मजदूर महापंचायत का आयोजन किया. संयुक्त किसान मोर्चा की इस रैली के लिए 4 सितम्बर की दोपहर बाद से ही किसानों का हुजूम मुजफ्फरनगर रैली स्थल की ओर बढ़ने लगा था. पंजाब, हरियाणा के किसानों के साथ ही देश व प्रदेश के अन्य हिस्सों से लोग रात भर मुजफ्फर नगर पहुंचते रहे. संयुक्त किसान मोर्चा और उससे जुड़े संगठनों के ज्यादातर केंद्रीय नेता भी रात तक मुजफ्फर नगर पहुंच चुके थे. अखिल भारतीय किसान महासभा से जुड़ी पंजाब किसान यूनियन के जत्थे भी एआइकेएम के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य कामरेड गोरासिंह के नेतृत्व में 4 सितम्बर की शाम तक मुजफ्फरनगर पहुंच चुके थे.
रैली के लिए निर्धारित इंटर कालेज का बड़ा सा मैदान 5 सितम्बर की सुबह 9 बजे तक पूरी तरह भर चुका था. जबकि हजारों लोग मैदान के बाहर सड़कों पर घूम रहे थे. अभी भी राज्य के विभिन्न जिलों और दूसरे राज्यों से आने वाले हजारों लोग रास्तों में ही थे. संयुक्त किसान मोर्चे के कई नेता जिनमें बलबीर सिंह राजोवाल, डॉ. दर्शन पाल, कामरेड रुलदू सिंह मानसा आदि शामिल हैं, मंच पर सुबह 9 बजे से पहले ही पहुंच गए थे. बीकेयू (आरा.) के धर्मेंद्र मलिक सुबह 8 बजे से ही माइक से व्यवस्था बनाए रखने की अपील लगातार कर रहे थे. पहले दिन बारिश के कारण मैदान में कुछ जगह कीचड़ भी पड़ा था.
मैं सुबह साढ़े छः बजे जब बस में मेरठ से मुजफ्फरनगर के लिए जा रहा था, तो रास्ते में पंजाब, हरियाणा, यूपी नम्बर की किसान संगठनों के झंडे और राष्ट्रीय झंडा लगी गाड़ियों में लोग मुजफ्फरनगर की ओर बढ़ते नजर आने लगे थे. पीरपुर मंडेला और उससे कुछ आगे भी सड़क में इन झंडा लगी गाड़ियों को रोककर स्थानीय किसानों द्वारा केले, पानी और नास्ता दिया जा रहा था. पूरे रास्ते में राष्ट्रीय लोकदल के नेता जयंत चौधरी की फोटो लगी बड़ी होर्डिंग लगी थी. जिसमें किसान महापंचायत के लिए "मुजफ्फरनगर चलो" का आह्वान लिखा था. जब मैं खतौली कस्बा पहुंचा तो एक ट्रैक्टर ट्राली में किसान राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) का झंडा लिए मुजफ्फरनगर की ओर जा रहे थे.
रैली स्थल में खाली जगह न मिलने के कारण जितने लोग मैदान में जा रहे थे, उतने ही लोग मैदान से बाहर भी आ रहे थे. मैदान के मुख्य गेट के बाहर और एक किलोमीर दूर तक केले, हलवा, चना, लड्डू, पूड़ी, रोटी, पराठे,कड़ी चावल जैसी खाद्य सामग्री रैली में आने वाले किसानों के बीच बांटी जा रही थी. यह व्यवस्था ज्यादातर गांव के किसानों ने ही की थी. कुछ लंगर सिख संस्थाओं ने पहले दिन से ही लगा लिए थे. मुजफ्फर नगर में बाजार और दुकानें पूरी तरह बंद थे. पर स्थानीय दुकानदार और स्थानीय निवासी हर तरह से रैली में आने वाले किसानों की मदद कर रहे थे. स्थानीय नौजवान अपने घरों के आगे लोगों को रोक-रोक कर पानी पिलाते नजर आए. कई स्थानीय लोगों ने अपने घर के अंदर से पानी के पाइप निकाल कर सड़क में छोड़े थे ताकि लोग पानी पी सकें। रैली स्थल के आसपास भी पीने के पानी और शौचालयों की पूरी व्यवस्था थी। कई मेडिकल कैम्प और सचल मेडिकल वाहनों की व्यवस्था भी की गई थी।
दोपहर डेढ़ बजे तक रैली स्थल को आने वाली तीनों सड़कों से किसानों का सैलाब मैदान की ओर आता जा रहा था. कई जत्थे दोपहर दो बजे बाद भी पहुंचते रहे. राज्य, धर्म, जाति, क्षेत्र और भाषा के भेद को काट, लोगों का सैलाब इस रैली में उमड़ पड़ा. जिसने केंद्र और राज्य की भाजपा सरकारों को एक जोरदार और स्पष्ट संदेश भेजा. किसान मजदूर महापंचायत को समाज के सभी वर्गों का अभूतपूर्व समर्थन मिला. कार्यक्रम में शामिल होने के लिए लाखों किसानों को घंटो इंतजार करना पड़ा और दो तिहाई लोगों को मैदान के बाहर से भाषण सुनना पड़ा, जिसके लिए कई किलोमीटर तक एक संबोधन प्रणाली स्थापित की गई थी.
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और देश के कई अन्य राज्यों से लाखों किसान इस रैली में आए. इनमें पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों के प्रतिनिधि भी शामिल थे. युवा किसान भी भारी संख्या में पहुंचे. रैली के दौरान किसान-मजदूर एकता और हिन्दू-मुस्लिम एकता के साथ ही जो बोले सोनिहाल के नारे लगते रहे.
मुजफ्फरनगर रैली का एलान-साम्प्रदायिक दंगे नहीं होने देंगे किसान
किसान-मजदूर महापंचायत ने ऐलान किया कि किसान अब कभी भी देश में सांप्रदायिक दंगे नहीं होने देंगे. किसान आंदोलन के सभी नारे हिन्दू-मुस्लिम एकता को मजबूती देने वाले होंगे.
सभी वक्ताओं ने कहा कि किसान-मजदूर ऐजेंडा भाजपा-आरएसएस की सांप्रदायिक और जातिवादी राजनीति पर विजय प्राप्त करेगा. मुजफ्फरनगर किसान-मजदूर महापंचायत ने एसकेएम के मिशन उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड का भी उद्घाटन किया, जो दोनों राज्यों में 3 कृषि कानूनों को निरस्त करने और केंद्रीय कानून के लिए C2 + 50% पर एमएसपी सुनिश्चित करने के लिए किसानों के संघर्ष को मजबूत करेगा. साथ ही आने वाले राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा की करारी हार सुनिश्चित करेगा.
संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि उत्तर प्रदेश की सरकार अंग्रेजी हुकूमत की ’फूट डालो, राज करो’ की नीति तथा जाति और धर्म की सांप्रदायिक नीति पर राज कर रही है. संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि यह महापंचायत केंद्र सरकार को चेतावनी देने के लिए की गई है. सभी जाति, धर्म और तबके के समर्थन से लाखों किसानों की रैली के बावजूद यदि सरकार तीनों कृषि कानूनों को रद्द नहीं करती है तथा कृषि उत्पादों की खरीद की कानूनी गारंटी नहीं देती है तो आंदोलन और तेज किया जाएगा.
संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि योगी सरकार ने किसानों से जो वायदे किए थे वे पूरे नहीं किए हैं. फसल खरीद के वायदे के अनुसार 20% की खरीद भी नहीं की गई है. यूपी सरकार ने 86 लाख किसानों की कर्जा माफी का वादा किया गया था जबकि 45 लाख किसानों का भी कर्ज माफ नहीं हुआ है. केंद्र सरकार की एजेंसी सीएसीपी ने पाया है कि वर्ष 2017 में गन्ना की लागत प्रति क्विंटल 383 थी, लेकिन किसानों को 325 रूपये क्विंटल का भुगतान किया गया, तथा गन्ना मिलों पर किसानों का 8,700 करोड़़ रुपया बकाया है. उत्तर प्रदेश में फसल बीमा का भुगतान वर्ष 2016-17 में 72 लाख किसानों को किया गया, वहीं 2019-20 में 47 लाख किसान को ही किया गया, जिसमें फसल बीमा कंपनियों को 2,508 करोड़ रुपए का मुनाफा हुआ है.
किसान-मजदूर महापंचायत ने उत्तर प्रदेश सरकार के वायदे के अनुसार 450 रूपये प्रति क्विंटल गन्ने का रेट देने की मांग करते हुए संयुक्त किसान मोर्चा की आगामी बैठक में आंदोलन का ऐलान करने का निर्णय लिया है.
27 सितम्बर को संपूर्ण भारत बंद का आह्वान
किसान मजदूर महापंचायत ने 27 सितंबर, सोमवार को भारत बंद को पूरे देश में व्यापक रूप से सफल बनाने का आह्वान किया. अपरिहार्य कारणों से भारत बंद की पूर्व तिथि में परिवर्तन किया गया है.
संयुक्त मोर्चा के नेताओं ने एलान किया कि हमारी लड़ाई अब सिर्फ तीन कृषि कानून तक ही सीमित नहीं है. यह लड़ाई अब भाजपा-आरएसएस से देश बचाने की है. मोदी सरकार द्वारा 70 साल में जनता की मेहनत के टेक्स से बनी सभी सरकारी व सार्वजनिक संपतियां अपनी चंद चहेती कारपोरेट कम्पनियों को कौड़ियों के भाव लुटाई जा रही हैं. चार श्रम कोड कानूनों के जरिये डेढ़ सौ साल के संघर्षों व कुर्बानियों से हासिल मजदूरों के सभी अधिकारों को खत्म किया जा रहा है. नौकरियां समाप्त हो रही हैं, जिससे हमारे नौजवान बेरोजगार घूम रहे हैं. शिक्षा व स्वास्थ्य के निजीकरण की मुहिम ने आम आदमी को इन सुविधाओं से वंचित करना शुरू कर दिया है. लोकतांत्रिक विरोध की आवाजों को सत्ता का आतंक पैदा कर लगातार दबाया जा रहा है. संविधान और संवैधानिक संस्थाओं को नष्ट किया जा रहा है.
जनसभा को एसकेएम के सभी प्रमुख नेताओं और उपस्थित सभी राज्यों के नेताओं ने संबोधित किया. इनमें कई महिलाएं और युवा वक्ता भी शामिल थे. उन में से प्रमुख राकेश टिकैत, बलबीर सिंह राजेवाल, जगजीत सिंह डल्लेवाल, डॉ दर्शन पाल, जोगिंदर सिंह उगराहां, शिवकुमार शर्मा (कक्का जी), हन्नान मोल्ला, योगेंद्र यादव, मेधा पाटकर, युद्धवीर सिंह, गुरनाम सिंह चढूनी, बलदेव सिंह निहालगढ़, रुलदु सिंह मनसा, कुलवंत सिंह संधू, मनजीत सिंह धनेर, हरमीत सिंह कादियां, मनजीत राय, सुरेश कोथ, रंजीत राजू, तेजिंदर सिंह विर्क, सत्यवान, नरेश टिकैत, धर्मेंद्र मलिक, राजेश सिंह चौहान, राजवीर सिंह जादौन, अमृता कुंडू, सुनीलम, आशीष मित्तल, डॉ सतनाम सिंह अजनाला, सोनिया मान, जसबीर कौर नत्त, जगमती सांगवान के अलावा विभिन्न खापों के प्रधान थे.