दोनों धार्मिक कट्टरपंथी ताकतों के लिए
पुरुषोत्तम शर्मा
अपने अंतिम हज 630 ईस्वी को पैग़म्बर मुहम्मद ने मक्का में जो भाषण दिया, उसमें उन्होंने कहा “ “.....ईश्वर एक है. समस्त मानव आदम की संतान हैं और वे सब बराबर हैं. किसी अरबी को गैर अरबी पर, गैर अरबी को अरबी पर, काले को गोरे पर, गोरे को काले पर कोई श्रेष्ठता प्राप्त नहीं है. यदि किसी को श्रेष्ठता प्राप्त है तो भले कर्मों की". पैग़म्बर मुहम्मद के ये बोल इस बात को समझने के लिए काफी हैं कि इस्लाम की बुनियाद मनुष्यों में हर तरह के भेदभाव को समाप्त कर शान्ति (इस्लाम) की स्थापना था. यही कारण था कि बाद में इस्लाम ने पूरी दुनिया के साथ ही भारत में भी बड़ी संख्या में शोषित, दलित, वंचित समाज के लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया.
भारत में जिसे वैदिक धर्म / सनातन धर्म / हिन्दू धर्म के नाम से जाना जाता है, उसकी बुनियाद ही मनुष्य द्वारा मनुष्य से घृणा और अपृश्यता की बुनियाद पर खड़ी हुई. इस्लाम ने जहां विजित लोगों की सम्पत्ति में सभी वंचितों को हिस्सा दिया, वहीं वैदिक धर्म ने विजित समुदायों को शूद्र घोषित कर सभी तरह की संपत्तियों और नागरिक अधिकारों से वंचित कर दिया. यहां तक कि सवर्णों के लिए यह हिदायत दी गयी कि अगर किसी सूद्राणी पत्नी से उनका पुत्र पैदा हुआ है, तो उसे अपनी सम्पत्ति का हिस्सा बिलकुल भी न दें. इस स्थिति ने दुनिया में हिन्दू धर्म के विस्तार को बाधित कर दिया. वहीं बाद में इस्लाम ने जब सामन्तशाही राज्यों को खुद में समाहित किया तो वहां भी समाज के वंचित तबकों की वही स्थिति होने लगी, जो भारत में वैदिक धर्म ने बनाई थी.