पुरुषोत्तम
शर्मा
जब भी सर्दियां शुरू होती हैं, देश की राजधानी दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में वायु प्रदूषण के कारण दम घोंटू माहौल हो जाता है. इसके साथ ही शुरू हो जाता है इस प्रदूषण के लिए पंजाब और हरियाणा के किसानों को अपराधी साबित करने की खुली राजनीति. समाचार पत्रों में छपी ख़बरों के अनुसार इस बार तो देश के माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी इस प्रदूषण के लिए किसानों द्वारा पराली जलाने की घटना को जिम्मेदार मानते हुए इसे सख्ती से रोकने के लिए पंजाब और दिल्ली सरकार को अपनी ताकत के इस्तेमाल की चेतावनी तक दे डाली. तो क्या वाकई दिल्ली के इस दम घोंटू वातावरण के लिए पंजाब, हरियाणा, दिल्ली के किसान ही जिम्मेदार हैं? या हमारी अब तक की सरकारों की अनियोजित शहरी विकास की नीति, अमीरों और उच्च मध्यवर्ग का विलासिता का शहरी जीवन और केंद्र सरकारों की किसान विरोधी नीतियाँ इसके लिए जिम्मेदार है? इस सवाल पर जरूर एक राष्ट्रीय बहस होनी चाहिए. किसानों के लिए पर्यावरण व जैव विविधता की रक्षा का सवाल हमेशा अपनी खेती किसानी से जुड़ा रहा है. कार्बन उत्सर्जन को सोखने में किसानों की फसलों और बागवानी की भी एक भूमिका रहती है. एसे में जिन किसानों को पर्यावरण और जैव विविधता की रक्षा के लिए ग्रीन बोनस दिया जाना चाहिए, उनके सिर पर अमीरों की विलासिता और सरकार की गलत नीतियों के कारण हो रहे गंभीर पर्यावरणीय अपराध का आरोप लगाया जाना कहाँ तक उचित है?
इस पूरे मामले को समझने से पहले दिल्ली की भौगोलिक और पारस्थितिकीय स्थितियों को जानना जरूरी है. दिल्ली देश की सबसे पुरानी और 800 किलोमीटर क्षेत्र में फैली पर्वत श्रृंखला अरावली से सटी है. इसके उत्तर में हिमालय व उसकी तराई और पश्चिम में थार रेगिस्तान है. इस कारण यह अपने आस-पास के क्षेत्र से कुछ गहरी भूमि पर बसी है. अपनी भौगोलिक स्थितियों के कारण गर्मियों के दौरान दिल्ली की हवा गर्म और शुष्क होती है, तब यहाँ थार रेगिस्तान पश्चिम/दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र से आई गर्म और शुष्क हवाएँ चलती हैं. इस वजह से यहाँ हवा हल्की ऊपर उठती है और यहाँ बन रहे प्रदूषण को थोड़ा दूर धकेल देती है. जबकि सर्दियों में यहाँ की हवा ठंडी और भारी होती है. इसलिए सर्दियों के दौरान दिल्ली में इसके ठीक विपरीत स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं. ठंड, हवा का कम दबाव, वातावरण में ज्यादा आद्रता और कुछ गहरे क्षेत्र में बसावट के कारण यहाँ की प्रदूषित हवा दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में ही फंसी रह जाती है. सर्दी का मौसम आते ही हवा में मिले धूल के कण और प्रदूषक तत्व इस रुकी हुई हवा में बंद हो जाते हैं, जिसके परिणाम स्वरूप स्मॉग (धूल, धुंए और कुंहासे का मिश्रण जिसे हिंदी में धुआँसा कहते हैं) होता है. बारिश, मध्यम या तेज हवा न होने तक सर्दियों में दिल्ली की यह पारिस्थितिकीय/वातावरणीय स्थितियां यहाँ पैदा हो रहे प्रदूषण के यहीं बने रहने की प्राकृतिक स्थितियां बनाए रखती हैं.
दिल्ली में दम घोंटू वातावरण का अक्टूबर से दिसंबर के बीच का यह वही समय होता है, जब दशहरा, दीपावली जैसे त्यौहारों में बड़ी मात्रा में यहाँ पटाखों का इस्तेमाल किया जाता है. यही नहीं यह समय बड़े पैमाने पर शादियों के आयोजन का भी है. इन शादियों में भी असीमित पटाखों का इस्तेमाल किया जाता है. कैट की रिसर्च शाखा कैट रिसर्च एंड ट्रेड डेवलपमेंट सोसाइटी द्वारा हाल ही में देश के 20 प्रमुख शहरों के व्यापारियों एवं सर्विस प्रोवाइडर के बीच किए गए एक सर्वे में जो तथ्य सामने आए हैं, उसमें अकेले दिल्ली में ही इस सीजन में 3.5 लाख से अधिक शादियां होने की उम्मीद है. ये वे शादियाँ हैं जिनके लिए मैरिज हाल, फ़ार्म हाउस, काटेज से लेकर होटल बुक किये जाते हैं. सरकारी सामुदायिक केन्द्रों, धर्मशालाओं, मन्दिरों, गुरुद्वारों और गरीब बस्तियों की गलियों/खाली प्लाटों में टेंट ओढ़ कर होने वाले ग़रीबों व निम्न मध्यवर्ग की शादियाँ इससे अलग हैं. अगर उन्हें भी जोड़ दिया जाय तो दिल्ली में इस सीजन में होने वाली इन शादियों की संख्या कम से कम 6 लाख तक पहुँच जाएगी. दशहरा-दीपावली जैसे त्यौहारों और इन शादियों में जो परिवार जितना पैसे वाला या जितना अमीर होता है, अपने स्टेटस को दिखाने के लिए उतने ज्यादा पटाखे फोड़कर दिल्ली-एनसीआर की हवा में जानलेवा बारूद घोलता है. दिल्ली में पटाखों पर तमाम प्रतिबंधों के बावजूद इन स्थितियों में कोई बदलाव नहीं आया है.
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के विश्लेषण के
मुताबिक इस साल दिवाली के दिन राष्ट्रीय राजधानी में फेफड़ों को नुकसान पहुंचाने
वाले पीएम2.5
और पीएम10 के स्तर में पिछले साल की दिवाली
वाले दिन के मुकाबले क्रमश: 45 प्रतिशत और 33 प्रतिशत की वृद्धि हुई. अगस्त 2018 में एक संसदीय समिति ने राज्यसभा में 'दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण की स्थिति' पर एक रिपोर्ट
पेश की थी. इस रिपोर्ट के मुताबिक, गाड़ियों से निकलने वाला
धुंआ, निर्माण कार्य, उद्योगों से
निकलने वाला धुंआ, कचरा जलाने पर निकलने वाला धुंआ, गाड़ियों
से सड़कों पर जमी हुई धूल के उठने, सर्दियों में गाड़ियों से निकलने वाले धुंए की
वजह से हवा में PM2.5 की मात्रा 25% और गर्मियों में 9% रहती
है. सर्दियों में जितना PM10 हवा में पाया जाता है, उसमें से 3.1% कंस्ट्रक्शन से जुड़े काम के कारण होता
है. दिल्ली के गाजीपुर, भलस्वा और ओखला में लैंडफिल साइट (कूड़े
के पहाड़) हैं. यहां हर दिन साढ़े 5 हजार टन कचरा डाला जाता है. इसे जलाने व
रिसाइकिलिंग के जरिये भी दिल्ली में 5 प्रतिशत प्रदूषण बढ़ता है. एक रिपोर्ट के
अनुसार घरेलू स्रोत दिल्ली के प्रदूषण में 13 फीसदी का
योगदान देते हैं. वहीं, सड़क की धूल और अन्य स्रोत चार फीसदी
योगदान करते हैं.
वाहन उत्सर्जन, निर्माण कार्य, उद्योग और घर के अंदर खाना पकाने व अन्य उपयोग से होने वाला उत्सर्जन प्रदूषण दिल्ली के वायु प्रदूषण के शीर्ष स्रोत हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली एनसीआर की सड़कों पर क्षमता से अधिक वाहन चल रहे हैं. सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट के अनुसार दिल्ली-एनसीआर में रोजाना लगभग 4 करोड़ यात्राएं होती हैं. इनमें से मेट्रो व अन्य सार्वजनिक साधनों से मात्र 70 लाख यात्राएं होती हैं. बाक़ी लगभग 3.50 करोड़ यात्राएं निजी वाहनों से होती हैं. बढ़ते निजी वाहनों के कारण दिल्ली की औसत रफ्तार 10 किमी प्रति घंटा है. दिल्ली में पंजीकृत वाहनों की संख्या सबसे अधिक है. दिल्ली में वाहन प्रदूषण के आंकड़े निम्नलिखित हैं: ट्रक और ट्रैक्टर 9 प्रतिशत उत्सर्जन उत्पन्न करते हैं; दोपहिया वाहनों से 7 प्रतिशत; तिपहिया वाहनों से 5 प्रतिशत; कारों और बसों में से प्रत्येक से 3 प्रतिशत; और हल्के वाणिज्यिक वाहनों से 1 प्रतिशत. कुल मिलाकर, दिल्ली में कुल प्रदूषण भार के 40 प्रतिशत के लिए अकेले वाहन जिम्मेदार हैं. दिल्ली में प्रदूषण परिदृश्य में निर्माण स्थल और संबंधित गतिविधियाँ जिनमें ईंट भट्टे भी शामिल हैं, भी प्रमुख भूमिका निभाती हैं.
दिल्ली प्रदूषण
नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, 30% वायु प्रदूषण
निर्माण कार्यों की धूल के कारण होता है, कुछ अन्य एजेंसियां इसकी मात्रा 20 या 23
प्रतिशत बताती हैं. औद्योगिक प्रदूषण और कूड़े के ढेर भी वायु प्रदूषण को बढ़ा रहे
हैं और हवा में धुंध का निर्माण कर रहे हैं. दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के आसपास कई
औद्योगिक समूह हैं. उदाहरण के लिए, नजफगढ़ बेसिन देश के सबसे
प्रदूषित औद्योगिक समूहों में से एक है. दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में और उसके आस-पास
स्थित 3000 से अधिक उद्योगों के साथ, औद्योगिक
प्रदूषण परिवेशीय वायु प्रदूषण भार में लगभग 18% का योगदान
देता है. इस तरह अगर देखें तो दिल्ली में वायु प्रदूषण बढाने में वाहन उत्सर्जन का
40 प्रतिशत, निर्माण-धूल का 20, उद्योग का
18 प्रतिशत, घरेलू उपयोग का 13 प्रतिशत तथा कूड़ा निस्तारण का 5 प्रतिशत हिस्सा
बनता है. यानी दिल्ली के प्रदूषण में कम से कम 95 प्रतिशत हिस्सा दिल्ली-एनसीआर
में पैदा हो रहे प्रदूषण का ही है. एसे में दिल्ली-एनसीआर के बाहर से दिल्ली में
प्रवेश करने वाले प्रदूषण की मात्रा 5 प्रतिशत से ज्यादा हो ही नहीं सकती है. तो
फिर दिल्ली के प्रदूषण को 20-25 प्रतिशत बढाने का आरोप पंजाब, हरियाणा और दिल्ली
के किसानों पर लगाने का क्या आधार है?
पंजाब, हरियाणा, दिल्ली का किसान धान की खेती से तंग आ गया है. पिछले दो वर्षों में पंजाब हरियाणा के किसानों ने पराली जलाना काफी कम कर दिया है और प्रशासन से पराली काटने की ज्यादा मशीनें उपलब्ध कराने की मांग की है. अब सिर्फ वहीं पराली जलती है, जिन खेतों में काफी दिनों तक खेत खाली करने के लिए पराली काटने वाली मशीन उपलब्ध नहीं हो पाती है. फिर भी दिल्ली के प्रदूषण के लिए किसानों को आरोपित करने से पंजाब हरियाणा के किसानों में गुस्सा है. पंजाब हरियाणा का किसान अब धान की खेती को छोड़ कर अन्य फसलें उगाना चाहता है. इसका मुख्य कारण है कि चावल उसके भोजन का मुख्य हिस्सा कभी नहीं रहा है, वह सिर्फ देश के लोगों की भूख मिटाने के लिए धान की खेती करता है. इस धान की खेती में पानी की ज्यादा खपत ने इन क्षेत्रों में पानी का बड़ा संकट खड़ा कर दिया है. यहाँ भूगर्भीय जल स्तर में हर साल गिरावट बढ़ती जा रही है. अगर धान की खेती के बदले इस क्षेत्र में अन्य फसलों को प्रोत्साहन न मिला तो पंजाब हरियाणा का एक हिस्सा जल्द ही मरुस्थल/रेगिस्तान में बदल जाएगा.
पंजाब हरियाणा
का किसान अपने भविष्य पर मंडरा रहे इस खतरे को समझ कर ही सरकार से कम पानी की
जरूरत वाली अन्य फसलों जैसे मूंग, अरहर, मक्का, बाजरा, ज्वार, सोयाबीन आदि को
प्रोत्साहित करने की मांग लगातार कर रहा है. किसानों की मांग है कि जिस तरह पंजाब
व हरियाणा सरकारें उनके धान व गेहूं की पूरी फसल को निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य
(एमएसपी) पर गारंटी से खरीदती हैं, उसी तरह मूंग, अरहर, मक्का, बाजरा, ज्वार की
पूरी फसल को भी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने की गारंटी करें. पर केंद्र व पंजाब
हरियाणा की सरकारें ऐसा नहीं कर रही हैं. पंजाब में किसानों द्वारा उत्पादित कुल
मूंग में से सरकार मात्र 25 प्रतिशत की खरीददारी एमएसपी पर करती है. किसानों को
अपना बाक़ी मूंग, मक्का, बाजरा लगभग 40 प्रतिशत कम भाव पर खुले बाजार में बेचने पर
मजबूर होना पड़ता है. इस लिए अगर माननीय अदालतों को भी इस सम्बन्ध में कोई आदेश
देना है तो वह मजबूर किसानों पर मुकदमा दर्ज कराने के आदेश देने के बजाय उनकी गैर
धान-गैर गेहूँ फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने की गारंटी के लिए केंद्र
सरकार को आदेश करे.
दरअसल किसानों पर दिल्ली के वायु प्रदूषण को बढाने का आरोप लगाने वाले दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले राजनेता, नौकरशाह, अमीर और उच्च मध्यवर्ग के लोग हैं. जबकि दिल्ली के वायु प्रदूषण को इस जानलेवा स्थिति तक पहुँचाने में समाज के इसी ऊंचे व प्रभावशाली तबके की मुख्य भूमिका है. दिल्ली के वायु प्रदूषण में सबसे ज्यादा भूमिका निभाने वाले निजी और सरकारी वाहनों को कम कर बेहतर सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था और कार्यस्थल के करीब आवास की व्यवस्था के शहरी विकास के माडल के बारे में न तो सरकारें, अदालतें और नौकशाह बोलते हैं, और न ही यहाँ का उच्च मध्यवर्ग व अमीर तबका. ये वही तबका है जिसके पास परिवार के सदस्यों से ज्यादा संख्या में वाहन रखे हैं और सिर्फ एक आदमी के लिए इनका एक वाहन दिल्ली की सड़कों पर उतर आता है. घर में अधिक वाहन होने के कारण दिल्ली में ज्यादा प्रदूषण के समय लागू होने वाले सम-विषम नियम का भी इनके वाहन चलाने पर कोई असर नहीं होता है. वो माननीय न्यायाधीश और नामी अधिवक्ता तक इसके लिए किसानों को जिम्मेदार ठहरा देते हैं, जो एक बड़ी गाड़ी में रोज अकेले-अकेले अदालत आ कर दिल्ली के सड़क जाम व वायु प्रदूषण में इजाफा करते हैं.
दिल्ली में रोजाना चार करोड़ यात्राओं में लगभग 25 प्रतिशत यात्राएं दिल्ली से बाहर के उन लोगों की होती हैं, जिन्हें यहाँ सिर्फ बस, ट्रेन और जहाज पकड़ने या बदलने के लिए आना होता है. अगर दिल्ली एनसीआर में एक व्यक्ति के लिए सड़क पर एक चारपहिया वाहन के चलाने पर सख्त रोक लग जाए, पार्किंग की व्यवस्था के बिना चल रहे सभी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर निजी वाहन ले जाने पर रोक लग जाए, पैट्रोल व डीजल के नए वाहनों के पंजीकरण पर पूर्ण रोक लगाकर सिर्फ सीएनजी व इलैक्ट्रिक वाहनों का ही नया पंजीकरण का नियम बना दिया जाए और दिल्ली एनसीआर के अन्दर के सभी बड़े रेलवे स्टेशनों, अंतर्राष्ट्रीय व अंतर्देशीय हवाई अड्डों व बस अड्डों को दिल्ली एनसीआर की घनी आबादी से बाहर कर उसे मेट्रो सेवा से जोड़ दिया जाए, दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में स्थापित तमाम उद्योगों और आईटी पार्कों को पूर्वी उत्तर प्रदेश, बुंदेलखंड, बिहार और उड़ीसा जैसे पिछड़े क्षेत्रों में स्थानांतरित कर उन क्षेत्रों को रोजगार के नए केन्द्रों के रूप में विकसित किया जाय, तो मानव बोझ को कम करते हुए दिल्ली एनसीआर में लगने वाले सड़क जाम और वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है. क्या कोई हमारी आवाज सुनेगा या अभी भी अपने द्वारा किये गए पर्यावारणीय अपराध का ठीकरा किसानों के ऊपर ही फोड़ा जाएगा?
(लेखक अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव व विप्लवी किसान सन्देश पत्रिका के सम्पादक हैं. मो-9410305930)