नये भोजपुर के रचनाकार जगदीश प्रसाद (मास्टर साहब)

सुधीर सुमन

गरीब-मेहनतकश जनता के हित में सामाजिक-राजनीतिक बदलाव के संघर्ष को नई उंचाई प्रदान करने वाले और भारत के कम्युनिस्ट आंदोलन में भोजपुर को चमकते सितारे के रूप में स्थापित करने वाले शहीद का. जगदीश प्रसाद (मास्टर साहब)और उनके साथियों को कभी भुलाया नहीं जा सकता। आज से 50 साल पूर्व 10 दिसंबर को अपने साथी रामायण राम के साथ वे शहीद हुए थे। 10 दिसंबर ही उनका जन्मदिन भी है।

जुल्म की क्रूर सत्ताओं के खिलाफ किसी भी स्तर के संघर्ष और गरीब-मेहनतकश जनता के प्रति अटूट प्रेम को कुर्बानी की हद तक जाकर निभाने वाले का. जगदीश मास्टर और उनके साथी आज भी हमारे लिए प्रेरणा है। 

मास्टर जगदीश ने जिस समाज में जन्म लिया, वहां सबको आजादी और बराबरी नहीं हासिल थी। सामाजिक भेदभाव, शोषण-उत्पीड़न, स्त्रियों की मान-मर्यादा हनन के सामंती वर्चस्व के उस माहौल से टकराते हुए बालक जगदीश का विकास हुआ। शिक्षा और रोजगार के संघर्ष में वे सफल हुए। आरा शहर के जैन स्कूल में साइंस के  शिक्षक के रूप में उनकी नियुक्ति हुई। वे अपने छात्रों में बेहद लोकप्रिय थे। लेकिन वर्णभेद और आर्थिक असमानता, गरीब-मेहनतकश लोगों के शोषण-उत्पीड़न की घटनाएं उन्हें बेहद बेचैन करती थीं। आरा शहर में उन्होंने दलितों को उनके अधिकारों के लिए संगठित किया। गरीबों की राजनीतिक दावेदारी के लिए ही 1967 के विधानसभा चुनाव में अपने गांव के ही लोकप्रिय मुखिया और गरीबों के सच्चे संघर्षशील साथी, कम्युनिस्ट नेता का. रामनरेश राम के चुनाव एजेंट बने। उसी चुनाव में वोटिंग के दौरान उन पर सामंती ताकतों ने जानलेवा हमला किया। जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष में जिंदगी की जीत हुई। और उसके बाद मास्टर जगदीश प्रसाद, का. रामनरेश राम और का. रामेश्वर अहीर के नेतृत्व में भोजपुर में जिस वर्ग संघर्ष की शुरुआत हुई उसने भोजपुर और मध्य बिहार को हमेशा के लिए बदल दिया। उसने बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे देश और दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा। भारत के कम्युनिस्ट आंदोलन की उस क्रांतिकारी धारा को सशक्त बनाया जिसका लक्ष्य राजसत्ता पर दखल और आर्थिक समानता के साथ-साथ सामाजिक न्याय और सामाजिक समानता भी था।

नागार्जुन जैसे जनकवि ने इस आंदोलन के नेताओं की तुलना चंद्रशेखर आजाद और भगतसिंह से की। 

जनता के बुद्धिजीवियों और साहित्यकार-संस्कृतिकृमियों के लिए भी मास्टर जगदीश और उनके साथियों का जीवन एक मिसाल रहा है। वे न केवल जनता की राजनीति और आंदोलन के लिए ही प्रेरणा बने, बल्कि साहित्य और संस्कृति पर उनका गहरा प्रभाव पड़ा। जगदीश प्रसाद (मास्टर साहब) पर महाश्वेता देवी ने 'मास्टर साब' और मधुकर सिंह ने 'अर्जुन जिंदा है' और 'जगदीश कभी नहीं मरते' नामक उपन्यास लिखा। राणा प्रताप के उपन्यास 'भूमिपुत्र', बनाफर चंद्र के उपन्यास 'जमीन' में भी उनका चरित्र है। मधुकर सिंह की कई कहानियों में उनकी छवि है। उन पर सुरेश कांटक ने 'रक्तिम तारा' महाकाव्य लिखा। कई कविताओं और जनगीतों में इनके संघर्ष की अनुगूंज सुनाई पड़ी। युवानीति ने 'मास्टर साब' उपन्यास की नाट्य प्रस्तुति की थी, जिसकी अभूतपूर्व सफलता ने मास्टर साहब के प्रति जनता की गहरी श्रद्धा को जाहिर किया था।