क्या आरसीएफ कपूरथला के बनाये वेंटिलेटर को प्रमाणन हासिल हो पायेगा ?

क्या आरसीएफ कपूरथला के बनाये वेंटिलेटर, सेनिटाइजर टनल और पीपीई को प्रमाणन हासिल हो पायेगा ?




डा. कमल उसरी


भारतीय रेल की शुरुआत 16 अप्रैल 1853 में हुई जब एशिया एवं भारत की प्रथम रेल बोरीबंदर (छत्रपति शिवाजी टर्मिनल -मुम्बई ) से थाणे के बीच लार्ड डलहौजी के शासन काल में शाम 3:30 (15:30) बजे चली. आज भारतीय रेल का एशिया में प्रथम और विश्व में द्वितीय स्थान है ।


यदि आज देश भर मे लाकडाउन न होता तो आज हम रेलवे के स्थापना दिवस सप्ताह , जो हर वर्ष देश भर में 10 अप्रैल से शुरु होकर 16 अप्रैल तक मनाया जाता है, की शुरुआत कर रहे होते.


आजादी के ठीक बाद भारतीय रेल जो निजी क्षेत्र में था, उसे भारत सरकार ने पूरी तरह से सार्वजनिक क्षेत्र घोषित करके सरकारी नियंत्रण में ले लिया। उसके बाद भारतीय रेलवे ने भारत के विकास में बहुत बड़ी भूमिका निभाई ।


रेलवे के कई जोन बने, कई नये कारखानों  की शुुरुआत हुई,  लाखों लोगों को सरकारी नौकरी मिली, हजारों  सवारी – मालगाड़ी चलने लगी. देश की आजादी के शुरुआती दिनों मेंं केंद्रीय बजट में अकेले रेल का 70% बजट हिस्सा हुआ करता था.


आज जब कोरोना महामारी से उत्पन्न संकट के वक्त में भी रेल के कर्मचारी रात -दिन देश की सेवा में लगे हुए हैं. जहां एक तरफ ओपन लाइन के रेल कर्मचारी जरूरी सामान की ढुलाई के लिए रात दिन अपनी जान की परवाह किए बगैर देश हित, जन हित में मालगाड़ी का संचालन कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ भारतीय रेल के कारखाने में कार्यरत कर्मचारी तकनीशियन -इन्जिनियर्स नये -नये औजार /मशीन का निर्माण कर रहे हैं.


आज अंतरराष्ट्रीय मार्केट में वेंटिलेटर की कीमत 25 लाख से 40 लाख बताई जाती है, वहीं भारतीय रेल की कोच फैक्ट्री कपूरथला ने मात्र 18 हजार रुपए मे वेंटिलेटर तैयार कर लिया है. अगर भारत सरकार रेलवे को बड़ी संख्या मे वेंटिलेटर निर्माण के लिए कहती है तो यकीनन देश भर को सस्ता वेंटिलेटर मिल सकता है.


स्पष्ट है, जब पूरा देश लाकडाउन में घरों में बंद होकर रह गया है, उसी समय रेल कोच फैक्ट्री कपूरथला में कार्यरत कर्मचारियों, तकनीशियनों , इंजीनियरों  ने सेनेटाइजर टनल, वेंटिलेटर, पीपीई का निर्माण किया जिसको रेल कोच फैक्ट्री कपूरथला के डाक्टर्स और मेडिकल स्टाफ ने मेडिकल जरूरत के मुताबिक यानी मानक के अनुसार बिल्कुल ठीक कहा है. कपूरथला कारखाने मेंं निर्मित सभी मेडिकल इक्विपमेंट को सही ठहराया गया है.


अब देखना है कि रेल कोच फैक्ट्री कपूरथला कारखाने बड़ी मेहनत से की गई इस खोजबीन को इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) उपयोग के लिए सर्टिफिकेट जारी करता है कि नहीं. कुछ लोग आशंकित हैं कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव में रेल कोच फैक्ट्री कपूरथला द्वारा निर्मित वेंटीलेटर व अन्य सामग्री को प्रमाणन मिलना आसान नहीं होगा होगा क्योंकि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के एकाधिकार को सार्वजनिक क्षेत्र की ईकाई द्वारा चुनौती दी गई है.


कपूरथला कारखाने के मेहनतकश कर्मचारी यह शंका इसलिए व्यक्त कर रहे हैं क्योकि पहले ऐसा हो चुका है. इस कारखाने द्वारा कुछ समय पहले अत्याधुनिक बायो टायलेट का निर्माण किया गया था .
निर्माण के दौरान जैसे ही बायो टायलेट के डेवलपमेंन्ट का काम पूरा हुआ, ठीक उसी समय उस पूरी तकनीक को निजी कंपनियों के हाथो में सुपुर्द कर दिया गया.


( लेखक ऐक्टू के राष्ट्रीय सचिव और आई आर ई एफ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष  हैं )