मणिपुर का अपराधी कौन? देश खुली आँखों से देख रहा है।


                         पुरुषोत्तम शर्मा

मणिपुर की राज्यपाल कह रही हैं कि बड़े पैमाने पर हो रही हिंसा और 60 हजार लोगों के शरणार्थी बनने की रिपोर्ट उन्होंने ऊपर (केंद्र सरकार को) भेज दी थी, पर कोई नहीं सुन रहा है।

प्रधान मंत्री 78 दिन बाद मजबूरी में मुंह खोलते हैं, पर न तो मणिपुर में शांति की अपील करते हैं, और न ही मणिपुर हिंसा के मुख्य जिम्मेदार राज्य के मुख्यमंत्री व केन्द्रीय गृहमंत्री पर कोई कार्यवाही करते हैं। 

उल्टे खबर को प्रसारित करने वाले ट्वीटर पर कार्यवाही की गई। प्रधानमंत्री अन्य विपक्ष शासित राज्यों में अपराध का उदाहरण देकर मणिपुर की बेटियों के साथ हिंसक भीड़ द्वारा की गई बर्बर यौन हिंसा को सामान्य घटना बना देते हैं।

राज्य सरकार कह रही है कि राज्य के पुलिस कर्मी थानों में ड्यूटी आना छोड़ दिये हैं, इस लिए कानून व्यवस्था नहीं सुधर रही है। 

बर्बर यौन हिंसा की पीड़ित कह रही हैं कि पुलिस ने खुद उन्हें उस हैवानियत भरी भीड़ को सौंपा। पर उन पुलिस वालों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई है।

राज्य सरकार के अनुसार पुलिस शस्त्रागाह से 6 हजार हथियार हिंसक लोगों ने लूट लिए हैं। पर उन्हें बरामद करने के लिए राज्य सरकार कोई कार्यवाही नहीं कर रही है। 

क्या इसका सीधा मतलब नहीं निकलता कि भाजपा की राज्य सरकार ने ही कुकी-नगा जनजाति विरोधी इन हिंसक गिरोहों व इस हिंसा को प्रायोजित किया है। क्योंकि खुद मुख्यमंत्री पहाड़ी जनजातियों के खिलाफ बयान देते रहे हैं।

राज्य का स्वास्थ्य विभाग कह रहा है कि डॉक्टर अस्पतालों में है ही नहीं। इस लिए गम्भीर घायलों के इलाज के लिए आईसीयू चल ही नहीं पा रहे हैं।

मणिपुर में जिनके जिम्मे शासन व्यवस्था है, वे इस हिंसा को बढ़ाने में लगे हैं। देश की बागडोर जिन प्रधानमंत्री के हाथ में है, वे मणिपुर में घट रही इन असहनीय बर्बर घटनाओं का सामान्यीकरण कर रहे हैं।

असल में केंद्र सरकार और उनके चहेते कारपोरेट की नजर मणिपुर के पहाड़ों के नीचे दबे बेशकीमती खनिज पदार्थों (मिनरल्स) पर है। राज्य के लगभग 90 प्रतिशत क्षेत्रफल वाले इन पहाड़ी इलाकों में कुकी-नगा आदिवासी रहते हैं। जिनकी आबादी 40 प्रतिशत है।

इन आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन पर बाहरी लोगों का कब्जा न हो जाए, इसके लिए संविधान की धारा 371 के तहत उन्हें संरक्षण प्राप्त है। कोई बाहरी आदमी वहां जमीन नहीं खरीद सकता है।

भाजपा-आरएसएस ने मणिपुर के 10 प्रातिशत क्षेत्रफल मैदान में रहने वाली 50 प्रतिशत से ज्यादा मैतेयी जाति, जो खुद को जन जाति न मानकर हिन्दू सवर्ण मानती है, उनको जनजाति का दर्जा दिलाकर पहाड़ में भी जमीन खरीदने के लिए पात्र बनाने का अभियान चलाया। 

लक्ष्य था कि मैतेयी की आड़ में कारपोरेट कम्पनियों को जमीन मिल जाएगी और मैतेयी जाति को अपनी कट्टर हिंदुत्व की राजनीति का स्थाई गढ़ बना दिया जाएगा। 

आरएसएस-भाजपा अपनी राजनीतिक साजिश में कामयाब हो गए। मातृप्रधान उत्तर पूर्व के समाज में जहां महिलाओं की गरिमा को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है, वहां अपनी घृणा व विभाजन की राजनीति से महिलाओं पर बर्बर यौन हिंसा कराने में वे सफल हो गए।