फासीवादी हमले के ख़िलाफ़ मज़बूत वामपंथी एकता की ओर एक क़दम*
आज भारत में बढ़ते फासीवादी हमले को हराने के लिए वामपंथ की मज़बूत मौजूदगी और निर्णायक भूमिका की सख़्त ज़रूरत है. 31 मई को महाराष्ट्र के श्रीरामपुर में हुए एकता सम्मेलन में ‘लाल निशान पार्टी’ के भाकपा(माले) में विलय की घोषणा इस दिशा में एक उत्साहजनक क़दम है. यह एकता भारत के कम्युनिस्ट आंदोलन की दो महत्वपूर्ण विरासतों को उस राज्य में जोड़ती है, जो ऐतिहासिक रूप से सामाजिक समानता की लड़ाई का गढ़ रहा है. महाराष्ट्र, जहां एक ओर जनआंदोलनों की क्रांतिकारी परंपरा रही है, वहीं यह भारतीय फासीवाद की विचारधारा का भी केंद्र रहा है. ऐसे में महाराष्ट्र में कम्युनिस्ट आंदोलन की हर प्रगति का विशेष महत्व है. भारत के संगठित कम्युनिस्ट आंदोलन के सौवें साल में लाल निशान पार्टी और भाकपा(माले) का यह विलय एक नई उम्मीद लेकर आया है.
लाल निशान पार्टी की शुरुआत उस बहस से जुड़ी रही है जो 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान भारत के कम्युनिस्ट आंदोलन के भीतर उभरी थी. यह आंदोलन महाराष्ट्र से शुरू हुआ और पूरे देश को झकझोर देने वाला शक्तिशाली जनविद्रोह बना, जिसने महाराष्ट्र के सतारा समेत कई जगहों पर समानांतर सरकारों की स्थापना तक का रास्ता खोला. लाल निशान पार्टी के संस्थापकों ने सीपीआई से अलग राह अपनाई. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय फासीवाद-विरोधी संघर्ष और भारत के औपनिवेशिक शासन के ख़िलाफ़ आज़ादी के आंदोलन को ज़ोरदार ढंग से जोड़ने की ज़रूरत महसूस की, और 'नवजीवन संगठन' के बैनर तले काम शुरू किया. संगठनात्मक रूप से सीपीआई से अलग होने के बावजूद नवजीवन संगठन खुद को भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन का अभिन्न हिस्सा मानता रहा और पूरी प्रतिबद्धता से काम करता रहा. उसने महाराष्ट्र के कई इलाकों में मज़दूरों, किसानों और विशेषकर ग्रामीण ग़रीबों के बीच मज़बूत आधार बनाया.
1930 के आख़िरी और 1940 के शुरुआती वर्षों में अंबेडकर, सामाजिक न्याय और मज़दूरों के हक़ की लड़ाई में एक मज़बूत राजनीतिक आवाज़ बनकर उभरे. 1936 में उन्होंने 'जाति का उन्मूलन' का आह्वान करते हुए 'इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी' बनाई, जिसने ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद को अपने दो मुख्य दुश्मन घोषित किया. इससे कम्युनिस्ट आंदोलन और अंबेडकर के बीच करीबी सहयोग का एक छोटा लेकिन बेहद अहम दौर शुरू हुआ. इस दौर में मज़दूर-किसान की स्वाभाविक एकता के प्रेरणादायक संकेत मिले और मज़दूर वर्ग के लिए प्रगतिशील क़ानूनों की राह भी बनी. दुर्भाग्यवश यह दौर ज़्यादा लंबा नहीं चला, और 1940 के आख़िर और 1950 के शुरुआती वर्षों में दोनों धाराएं गहरे मतभेदों के चलते अलग हो गईं. उस समय लाल निशान पार्टी ही एकमात्र कम्युनिस्ट धारा थी जिसने 1952 और 1954 के चुनावों में अंबेडकर के समर्थन में सक्रिय प्रचार किया—हालांकि इन चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. 1954 के उपचुनाव में पराजय के बाद जब अंबेडकर को राज्यसभा में भेजा गया, तब भी 'लाल निशान पार्टी' ने इसमें अहम भूमिका निभाई.
आगे के वर्षों में 'लाल निशान पार्टी ' संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन की एक महत्वपूर्ण ताक़त बनी रही और बाबासाहेब अंबेडकर द्वारा स्थापित 'रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया' की सहयोगी बनी. 1957 के विधानसभा चुनाव में एलएनपी धारा से जुड़े आठ नेता—कामरेड दत्ता देशमुख, भाई सत्ते, वीएन पाटिल, संताराम पाटिल, नागनाथ नाइकवाड़ी, बापूसाहेब भपकर, जयसिंह माली और डोंगर राम—चुनाव जीतकर विधायक बने. इस पार्टी ने ग्रामीण महाराष्ट्र में मेहनतकश जनता के अधिकारों और हितों के लिए कई संघर्षों का नेतृत्व किया. भूमि पुनर्वितरण, मज़दूरी में बढ़ोतरी और 1970 के दशक के गंभीर सूखे के दौरान रोज़गार गारंटी क़ानून की मांग जैसे आंदोलनों में उसे कई महत्वपूर्ण जीतें मिलीं.
1970 और 1980 के दशक में लाल निशान पार्टी आंदोलन को नई ऊर्जा मिली, जब पार्टी की नज़दीकियां दलित पैंथर्स और ‘मगोवा’ ग्रुप से बढ़ी. ‘मगोवा’ (जिसका अर्थ है "खोज" या "जांच") 1970 के शुरुआती वर्षों में सक्रिय युवा मार्क्सवादी बुद्धिजीवियों और कार्यकर्ताओं का एक ग्रुप था, जो मराठी में एक मार्क्सवादी मासिक पत्रिका ‘मगोवा’ प्रकाशित करता था. कॉमरेड अशोक मनोहर और मुक्ता मनोहर, जो इस ग्रुप से जुड़े थे, लाल निशान पार्टी में शामिल हुए और ट्रेड यूनियन आंदोलन में नई राजनीतिक और सामाजिक चेतना लेकर आए. लाल निशान पार्टी ने कॉमरेड दत्ता सामंत के नेतृत्व में चल रहे जोरदार मज़दूर आंदोलनों के साथ भी मज़बूत एकता कायम की — ख़ासकर 18 जनवरी 1982 को शुरू हुई ऐतिहासिक टेक्सटाइल हड़ताल के साथ. 1984 में जब इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देशभर में कांग्रेस की लहर थी और भाजपा केवल दो सीटें जीत पाई थी, उस दौर में कॉमरेड दत्ता सामंत ने मुंबई साउथ सेंट्रल सीट से लोकसभा चुनाव जीतकर कांग्रेस और भाजपा दोनों को हराया. यह जीत मजदूरों की ताकत का शानदार प्रदर्शन थी.
इस बीच, बिहार में भाकपा(माले) के नेतृत्व में चल रहा क्रांतिकारी किसान आंदोलन इंडियन पीपुल्स फ्रंट (आईपीएफ) के झंडे तले भूमिहीन ग्रामीण ग़रीबों की जबरदस्त चुनावी दावेदारी में बदल गया. 1989 के लोकसभा चुनाव में सामंतवाद-विरोधी संघर्ष ने चुनाव प्रक्रिया पर सामंती और अपराधी ताक़तों के दबदबे को तोड़ा और कॉमरेड रामेश्वर प्रसाद ने आरा से अपना पहला चुनाव जीत लिया. इसके बाद 1990 के विधानसभा चुनावों में और भी जीतें मिलीं. 8 अक्टूबर को दिल्ली में आईपीएफ के आह्वान पर आयोजित "दाम बांधो, काम दो" रैली ने देशभर की प्रगतिशील ताक़तों का ध्यान आकर्षित किया.
यही वह दौर था जब लाल निशान पार्टी का आईपीएफ और भाकपा(माले) के साथ रिश्ता बनना शुरू हुआ, जो समय के साथ और मज़बूत होता गया. 1995 में ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन्स (ऐक्टू) के तीसरे सम्मेलन के मौके पर पटना में आयोजित एक जनसभा को कॉमरेड अशोक मनोहर, कॉमरेड दत्ता सामंत और कॉमरेड विनोद मिश्रा ने संयुक्त रूप से संबोधित किया. 1997 में कॉमरेड दत्ता सामंत की हत्या, 1998 में कॉमरेड नागभूषण पटनायक और कॉमरेड विनोद मिश्रा का निधन, और 2003 में कॉमरेड अशोक मनोहर का गुजर जाना — हमारे दोनों संगठनों के लिए गहरे आघात थे. लेकिन इसके बावजूद दोनों पार्टियों के बीच सहयोग निरंतर बढ़ता रहा और आज यह ऐतिहासिक एकता के रूप में सामने आया है.
सितंबर 2024 में कॉमरेड एके रॉय द्वारा 1972 में स्थापित ‘मार्क्सवादी कोऑर्डिनेशन कमेटी’ का भाकपा(माले) में विलय और अब महाराष्ट्र की लाल निशान पार्टी का विलय, ऐसे समय में भाकपा(माले) को नई ताक़त और ऊर्जा से लैस करता है, जब भारत की संवैधानिक बुनियाद और संसदीय लोकतांत्रिक ढांचा लगातार फासीवादी हमलों का सामना कर रहे हैं. आज दांव पर सिर्फ़ संविधान नहीं है, बल्कि भारत को धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र की दिशा में बनाए रखने का भविष्य और नागरिकों के वे बुनियादी अधिकार हैं जो जीवन के हर क्षेत्र में ज़रूरी हैं — जिनके बिना हम न तो भारत को सचमुच आज़ाद बना सकते हैं और न ही लोकतंत्र को ज़मीन पर कामयाब बना सकते हैं. एक बड़ी और मज़बूत भाकपा(माले) जनता के हर जनतांत्रिक संघर्ष से गहरे जुड़ाव के इरादे से पूरी ताक़त के साथ काम करने के लिए दृढ़ता से प्रतिबद्ध है — वामपंथी ताक़तों में मज़बूत एकता और भाजपा-विरोधी राजनीतिक धारा के साथ व्यापक साझेदारी के रास्ते खोलते हुए.
( संपादकीय, एमएल अपडेट, 03 – 09 जून 2025)